Tuesday 14 October 2014

गुलदस्ता



छुड़ा रहे थे
जब तुम अपना हाथ
वक़्त बुन रहा था
एक गुलदस्ता
संग तुम्हारे बिताये
ख़ुशनुमा लम्हों के तिनकों से
कि !
वक़्त मुहैया करा देता है
कुछ राहतें भी.... !!!

उस दिन
कहा था तुमने
कि !
अक्सर गुलदस्ते
सूख जाया करते हैं
लेकिन ...
जानती हूँ मैं
कि !
पीड़ा की खाद
और बिछोह की नमी  रखेगी
गुलदस्ते में सजे खूबसूरत लम्हों को
सदा यूँ ही हरा-भरा ....!!

Tuesday 30 September 2014

आदिशक्ति माँ




शक्ति का हर स्वरुप माँ का है रूप युगों युगों से ही सदानीरायें भी कहलाती हैं माँ ....! जब-जब हुई चर्चा शक्ति की उभर आई तस्वीर सामने स्त्री की और मन की आँखों से जब देखो तो हर स्त्री रूप में झलकती है माँ ...! शक्ति रूपा माँ समस्त सृष्टि की जननी जब-जब पुरुष ने आदर और सम्मान भाव को भूल स्त्री को भोग्या समझा तब-तब शक्ति रूपा बनी है संहारिणी माँ ....! एक शक्ति स्वरूपा बसती है हमारे घर में बनकर हमारी माँ प्रेम और ममता की मूरत बिना कहे समझ जाती है हमारी भूख और जरूरत सुख-दुःख सब जान लेती रहती परेशानियों से अवगत जीवन के कठिन दौर में दोस्त बन साथ निभाती माँ ...! माँ तुझे प्रणाम !!!





Monday 22 September 2014

उजाले




ज़मीं अंधेरों की है

तो क्या है ..
.
मुझे ये यक़ीन है

कि !

इस बार

लम्बे समय तक

ठहरेंगे उजाले

क्योंकि !

हर दिन,

एक नयी सुबह के साथ

उम्मीद की मिटटी में

रोप देती हूँ

मैं इक नन्हा पौधा

रौशनी का ....!!!!

एक हौसला अब जगमगाने को हैं )