Monday 22 September 2014

उजाले




ज़मीं अंधेरों की है

तो क्या है ..
.
मुझे ये यक़ीन है

कि !

इस बार

लम्बे समय तक

ठहरेंगे उजाले

क्योंकि !

हर दिन,

एक नयी सुबह के साथ

उम्मीद की मिटटी में

रोप देती हूँ

मैं इक नन्हा पौधा

रौशनी का ....!!!!

एक हौसला अब जगमगाने को हैं )



12 comments:

  1. ब्लॉग की दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है , आभा

    बेहद खूबसूरत रचना है आपकी।
    बधाई आपको

    ReplyDelete
  2. सुंदर प्रस्तुति ...बधाई

    ReplyDelete
  3. उम्मीद की मिटटी में रौशनी का नन्हा पौधा :)
    कितने सुन्दर शब्द :) शुभकामनायें ब्लॉग जगत पर आने के लिए :)

    ReplyDelete
  4. Congratzz and all the best...
    :-)
    (y)

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर ...

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  7. आभा दी बहुत प्यारा लिखा है

    ReplyDelete
  8. आभार आप सभी के स्नेह का ......

    ReplyDelete