बाद मुद्दतों के
अभी तलक
वो तमाम शिकायतें
वहीँ , वक़्त के उसी मोड़ पर
किसी मजबूत मिनार की तरह
खड़ी मिलती हैं
चुक गए प्रेम की बैसाखी
का सहारा लेने से ज़्यादा
बेहतर समझा था
लड़खड़ाते क़दमों से
अपने-अपने क्षितिज को
तलाश लेना ....
गौर से देखो
तो दिख जाती हैं
कि !
ढह गयीं हैं कुछ ईंटें
गुस्से , अहंकार और बदसलूकी की
और चढ़ गयी है तमाम गर्द
परत-दर-परत
दुःख , खीझ , आत्मग्लानि और पछतावे की ...
लेकिन फिर भी शिकायतें हैं कि
न उखड़ती है , न ढहती हैं
खड़ी है वहीँ
बिना डिगे ...........बड़ी मुस्तैदी से
रिश्तों में वापसी की संभावना को
ख़ारिज करते हुए ....!!!!
रिश्तों में वापसी की संभावना को
ख़ारिज करते हुए ....!!!!