----सुई बन , कैंची मत बन-------
बचपन में, जब कभीहम भाई-बहिन
आपस में झगड़ते थे
छोटी सी बात पर
माँ-माँ चिल्लाते थे
घर की परेशानियों से जूझती
पैसे की तंगी से उलझती
हमें बेहतर जीवन
देने को तत्पर रहती
माँ !!
मेरा हाथ पकड़ती
और
हमेशा की तरह
वही जाना-पहचाना
वाक्य दोहराती .......
" सुई बन ,कैंची मत बन"
तब मेरा बालमन
इसे माँ की डांट समझ
कुछ समय बाद
सहज ही भूल जाता .....
आज उम्र के इस दौर में
एक सफल गृहणी का
कर्त्तव्य निभाते हुए ,
संयुक्त परिवार को
एक सूत्र में बांधते हुए
माँ के वाक्य में छुपे
गूढ़ अर्थ को जान पायी हूँ ....
आज जान गयी हूँ ...
कि , कैसे-----
सुई ... दो टुकड़ों को एक करती है
और
कैंची ...एक के दो टुकड़े करती है .....!!!
बहुत प्रेरक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteaabhaar aadarniy
Deleteमाँ जानती है बच्चों के भविष्य सुधारना ...
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक मन को छूती रचना है ...
hriday tal se aabhaar aadarniye
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