Friday, 10 July 2015

शिकायतें


बाद मुद्दतों के

अभी तलक
वो तमाम शिकायतें
वहीँ , वक़्त के उसी मोड़ पर
किसी मजबूत मिनार की तरह
खड़ी मिलती हैं
जहाँ से दो ज़िदगियों ने
चुक गए प्रेम की बैसाखी
का सहारा लेने से ज़्यादा
बेहतर समझा था
लड़खड़ाते क़दमों से
अपने-अपने क्षितिज को
तलाश लेना ....

गौर से देखो
तो दिख जाती हैं
कि !
ढह गयीं हैं कुछ ईंटें
गुस्से , अहंकार और बदसलूकी की
और चढ़ गयी है तमाम गर्द
 परत-दर-परत
दुःख , खीझ , आत्मग्लानि और पछतावे की ...

लेकिन फिर भी शिकायतें हैं कि
न उखड़ती है , न ढहती हैं
खड़ी है वहीँ
बिना डिगे ...........बड़ी मुस्तैदी से
रिश्तों में वापसी की संभावना को
ख़ारिज करते हुए ....!!!!

5 comments:

  1. शिकायतों का क़ुतुब मीनार :)

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  2. बहुत सुंदर रचना की प्रस्‍तुति।

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  3. बहुत सुंदर रचना की प्रस्‍तुति।

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  4. रिश्ते एक से कभी जो नहीं रहती ..उम्मीद अपनों की घर वापस आने की सभी को रहती हैं ..
    बहुत सुंदर

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  5. एक एक शब्द मन को छूता सराहनीय सृजन आदरणीय दी।

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