कविता :
सुख-दुख
सुख चमकता है आँखों में ऐसे,
जैसे उतर आयी हो चाँदनी
काजल की नोक पर
यह नज़र आ जाता है
अपनों को, परायों को!
दुःख वह सावन है
जो आँखों के बादलों में
चुपचाप कैद रहता
बरसना चाहे भी तो
रोक लो अगर उसे बरसने से,
तो रह जाती है भीतर ही भीतर
बस इक नमी सी
जिसे न कोई छू पाता
और न नज़र आता किसी को
न अपनों को, न परायों को!
सुख रहा सदा एक उत्सव सा
जिसमें सभी रहे आमंत्रित
अपने भी, ग़ैर भी
और दुःख !
रहा एक मंदिर तिमिर का
नितांत अपना
जिसमें साधक है,
बस एक ...."स्वयं"
-आभा खरे
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