Sunday, 14 September 2025

कविता :

  सुख-दुख 


सुख चमकता है आँखों में ऐसे,

जैसे उतर आयी हो चाँदनी
काजल की नोक पर
छुपाये नहीं छुपता है दमकना इसका
यह नज़र आ जाता है
ख़ुद से ज़्यादा औरों को
अपनों को, परायों को!
दुःख वह सावन है
जो आँखों के बादलों में
चुपचाप कैद रहता
बरसना चाहे भी तो
रोक लो अगर उसे बरसने से,
तो रह जाती है भीतर ही भीतर
बस इक नमी सी
जिसे न कोई छू पाता
और न नज़र आता किसी को
न अपनों को, न परायों को!
सुख रहा सदा एक उत्सव सा
जिसमें सभी रहे आमंत्रित
अपने भी, ग़ैर भी
और दुःख !
रहा एक मंदिर तिमिर का
नितांत अपना
जिसमें साधक है,
बस एक ...."स्वयं"
-आभा खरे

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