Tuesday 14 October 2014

गुलदस्ता



छुड़ा रहे थे
जब तुम अपना हाथ
वक़्त बुन रहा था
एक गुलदस्ता
संग तुम्हारे बिताये
ख़ुशनुमा लम्हों के तिनकों से
कि !
वक़्त मुहैया करा देता है
कुछ राहतें भी.... !!!

उस दिन
कहा था तुमने
कि !
अक्सर गुलदस्ते
सूख जाया करते हैं
लेकिन ...
जानती हूँ मैं
कि !
पीड़ा की खाद
और बिछोह की नमी  रखेगी
गुलदस्ते में सजे खूबसूरत लम्हों को
सदा यूँ ही हरा-भरा ....!!

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