Tuesday 27 October 2020

अनुत्तरित प्रश्न


अनुत्तरित प्रश्न

 

क्या कभी देख पाओगे ?
स्त्री की देह से परे
उसकी आँखों में बसा तुम्हारे लिए प्यार
उसके होंठों पे ठहरी तुम्हारे लिए दुआ
उसकी धड्कनों में समाया तुम्हारा नाम 
 
शायद कभी नहीं ..!! 


क्या कभी जान पाओगे ?
स्त्री की खिलखिलाहटों के परे
उसकी हँसी में छुपा दर्द का मंज़र
उसके संग-संग चलता पीड़ा का सफ़र
उसके सम्मान को चाक करता उलाहनों का खंजर 
 
शायद कभी नहीं ......!! 

क्या कभी समझ पाओगे ?

स्त्री के प्रगतिशील होने से परे
उसका संघर्ष समाज में अपनी जगह बनाने में
उसका संघर्ष अपने अस्तित्व को स्थापित करने में
उसका संघर्ष घर परिवार और कार्यक्षेत्र में संतुलन बनाने में 
 
शायद कभी नहीं .....!!! ~आभा खरे~

18 comments:

  1. उत्तर तो मेरे पास भी नहीं मगर प्रश्नों की हलचल ज़रूरी है।

    और इस प्लेटफॉर्म पर खुशामदीद। मेरा भी आना कम होता है मगर यहां सुकून है।

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    1. आपका साथ मेरा संबल है समीना जी।

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  2. वाह ! सुन्दर सशक्त, सार्थक लेखन ! नारी के विमर्श को स्थापित करती उम्दा रचना !

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    1. हार्दिक आभार साधना जी।
      आपके सहयोग की सदैव आकांक्षी रहूँगी।

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  3. लाजवाब सृजन आदरणीय दी ब्लॉग पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा गज़ब की लेखनी है।
    सादर

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  4. फिलहाल तो लगता है एक सदी औऱ गुजर जाएगी ।पर प्रश्न तो जरूरी है।

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  5. बहुत अच्छी कविता
    बधाई

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    1. आभार अग्रज।
      आपके मार्गदर्शन की आकांक्षी रहूँगी।

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  6. सोचनो को विवश करती सुन्दर रचना।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।
      आपके मार्गदर्शन की सदैव आकांक्षी रहूँगी।

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  7. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 4 नवंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  8. स्त्री की देह से परे
    उसकी आँखों में बसा तुम्हारे लिए प्यार
    उसके होंठों पे ठहरी तुम्हारे लिए दुआ
    उसकी धड्कनों में समाया तुम्हारा नाम - - मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति - - सुन्दर रचना।

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